साथियों नमस्कार!
आज हम बात करेंगे एक ऐसे मुद्दे की, जो इन दिनों छत्तीसगढ़ में खूब गरमाया हुआ है – शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण (Rationalization)। ये शब्द भले ही थोड़ा भारी-भरकम लगे, लेकिन इसका सीधा असर हमारे बच्चों की पढ़ाई और उनके भविष्य पर पड़ने वाला है। तो आइए, थोड़ा आसान भाषा में समझते हैं कि आखिर चल क्या रहा है और ये इतना बड़ा ‘उत्पात’ क्यों मचा हुआ है।

ये ‘युक्तियुक्तकरण’ आखिर है क्या बला?
सीधी भाषा में कहें तो, सरकार कह रही है कि स्कूलों में शिक्षकों का ‘सही’ बंटवारा करना है। यानी, जहाँ ज़्यादा शिक्षक हैं, वहाँ से हटाकर उन स्कूलों में भेजना है जहाँ शिक्षकों की कमी है। सुनने में तो ठीक लगता है, है ना? संसाधनों का सही इस्तेमाल!
पर, असली कहानी क्या है?
शिक्षकों और उनके संगठनों का कहना है कि ये सिर्फ ‘सही बंटवारे‘ का बहाना है, असल में तो शिक्षकों की संख्या कम की जा रही है! और यही वो पॉइंट है, जहाँ से सारा बवाल शुरू होता है।
पुराना सेटअप (2008 का): पहले क्या था? प्राथमिक स्कूलों में 60 बच्चों तक कम से कम एक प्रधान पाठक और दो सहायक शिक्षक होते थे। ये व्यवस्था इसलिए थी ताकि हर बच्चे पर ठीक से ध्यान दिया जा सके।
अब क्या हो रहा है? अब कहा जा रहा है कि 60 बच्चों तक सिर्फ एक प्रधान पाठक और एक सहायक शिक्षक ही रहेंगे। यानी, सीधा-सीधा एक शिक्षक की कटौती! अब आप ही सोचिए, एक प्रधान पाठक तो स्कूल के बाकी काम निपटाएगा, तो बेचारा एक सहायक शिक्षक इतने बच्चों को कैसे पढ़ाएगा?
आखिर बवाल क्यों?
शिक्षकों और अभिभावकों की कई बड़ी चिंताएं हैं:
- शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा हमला: भाई, जब शिक्षक ही कम होंगे तो पढ़ाई का स्तर कैसे सुधरेगा? एक शिक्षक इतने सारे बच्चों को कैसे संभाल पाएगा? ये तो ठीक वैसे ही है जैसे एक डॉक्टर को एक साथ 100 मरीजों को देखना पड़ जाए!
- हजारों पद खत्म होने का डर: शिक्षकों का कहना है कि इस ‘युक्तियुक्तकरण‘ के नाम पर हजारों शिक्षकों के पद खत्म हो सकते हैं। इससे ना तो नई भर्तियां होंगी और ना ही प्रमोशन के मौके मिलेंगे।
- स्कूल बंद होने का खतरा: कुछ स्कूलों को तो बंद ही किया जा रहा है या उनका विलय किया जा रहा है। खासकर छोटे गाँवों और सुदूर अंचलों के स्कूलों में ये खतरा ज्यादा है।
- ग्रामीण बच्चों के लिए मुसीबत: और यही सबसे बड़ी बात है! अगर स्कूल बंद हो गए या दूर हो गए, तो गाँव के बच्चे, खासकर दूरदराज के इलाकों के बच्चे, स्कूल जाएंगे कैसे? जंगलों-पहाड़ों से चलकर एक-दो किलोमीटर दूर जाना छोटे बच्चों के लिए लगभग नामुमकिन है। ऐसे में वे बेचारे पढ़ाई से वंचित रह जाएंगे, और शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजों तक ही सिमट जाएगा।
- गरीबों पर मार, प्राइवेट स्कूलों की चांदी: जब सरकारी स्कूलों में सुविधाएं कम होंगी, शिक्षक नहीं होंगे, या स्कूल दूर हो जाएंगे, तो मजबूरन गरीब अभिभावकों को भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में डालना पड़ेगा। सोचिए, जहाँ दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिलती है, वहाँ बच्चों की फीस कैसे भरेंगे? इससे सिर्फ प्राइवेट स्कूलों का धंधा चमकेगा और शिक्षा का बाजारीकरण बढ़ेगा।

सरकार का क्या कहना है?
सरकार का कहना है कि उनका मकसद शिक्षा को बेहतर बनाना है। उनके तर्क हैं:
- हजारों स्कूलों में एक ही शिक्षक है या कोई शिक्षक ही नहीं है, वहाँ शिक्षक मिल पाएंगे।
- छात्र-शिक्षक अनुपात सही हो जाएगा।
- बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी।
तो क्या करें?
ये बात तो पक्की है कि सिर्फ शिक्षकों की संख्या कम करके शिक्षा में सुधार नहीं आ सकता। सुधार तब आता है जब शिक्षक पर्याप्त हों, उन्हें अच्छी ट्रेनिंग मिले, और स्कूल में सभी जरूरी सुविधाएं हों।
सरकार को शिक्षकों और अभिभावकों की चिंताओं को सुनना चाहिए। पारदर्शिता के साथ काम करना चाहिए। आखिर बात हमारे बच्चों के भविष्य की है! अगर गाँव के बच्चे स्कूल नहीं जा पाएंगे या गुणवत्ता वाली शिक्षा नहीं मिलेगी, तो ये हमारे प्रदेश के भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा।
रोजगार के अवसरों पर सीधा वार
देखिए, एक तरफ सरकार कह रही है कि शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण हो रहा है, ताकि स्कूलों में शिक्षकों का सही बँटवारा हो सके। वहीं दूसरी ओर, अगर इस प्रक्रिया से शिक्षकों के पद कम हो जाते हैं या खत्म हो जाते हैं, तो इसका सीधा मतलब है कि नई भर्तियाँ बहुत कम होंगी या बिल्कुल बंद हो जाएँगी।
- सपनों का टूटना: कितने ही युवा सालों तक कड़ी मेहनत करते हैं। बी.एड. या डी.एड. जैसी प्रोफेशनल डिग्री लेते हैं, टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करने के लिए जी-जान लगा देते हैं। उनका सपना होता है कि वे शिक्षक बनकर बच्चों का भविष्य सँवारें और खुद के लिए भी एक सुरक्षित भविष्य बनाएँ। लेकिन जब पद ही नहीं निकलेंगे, तो उनके सारे सपने धरे के धरे रह जाएँगे।
- बेरोजगारी का बढ़ता बोझ: छत्तीसगढ़ में पहले से ही बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में, यदि शिक्षा विभाग में ही भर्ती के अवसर कम हो जाते हैं, तो यह उन हजारों-लाखों युवाओं के लिए और भी मुश्किल पैदा करेगा जो शिक्षक बनने की तैयारी कर रहे हैं।
- क्षमता का बेकार जाना: हमारे पास योग्य और प्रशिक्षित युवा हैं, जो बच्चों को पढ़ाने के लिए तैयार हैं। लेकिन अगर उन्हें मौका ही नहीं मिलेगा, तो उनकी योग्यता और प्रशिक्षण बेकार चला जाएगा। यह न सिर्फ उन व्यक्तियों का नुकसान है, बल्कि राज्य के मानव संसाधन का भी नुकसान है।
- प्रमोशन के मौके भी कम: जो शिक्षक पहले से नौकरी में हैं, उनके लिए भी यह चिंता का विषय है। यदि कुल पद कम हो जाते हैं, तो प्रमोशन के अवसर भी सीमित हो जाएँगे, जिससे करियर में आगे बढ़ने की राह और कठिन हो जाएगी।
कई लोगों एवं समुदाय को प्रभावित करेगा यह “युक्तियुक्तकरण”
इसके साथ ही, इस युक्तियुक्तकरण का असर सिर्फ शिक्षकों तक ही सीमित नहीं रहेगा। स्कूलों में काम करने वाले सफाई कर्मचारी (स्वीपर) और खाना बनाने वाली रसोइयों का रोजगार भी खतरे में पड़ सकता है। यदि स्कूलों का विलय होता है या कुछ स्कूल बंद हो जाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से इन कर्मचारियों की आवश्यकता भी कम हो जाएगी, जिससे उनकी नौकरी जाने का डर बना रहेगा। यही नहीं, कई स्कूलों में गाँव की स्व-सहायता समूह मध्यान्ह भोजन आदि संचालित करती हैं। स्कूलों के बंद होने या छात्रों की संख्या कम होने से उनके द्वारा चलाया जा रहा रोजगार भी प्रभावित होगा, जिससे ग्रामीण स्तर पर महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे और उनकी आर्थिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार, यह युक्तियुक्तकरण सिर्फ शिक्षा व्यवस्था को ही नहीं, बल्कि स्कूलों से जुड़े अन्य कर्मचारियों और स्थानीय समुदायों की आजीविका को भी प्रभावित कर सकता है।

एक बड़ा सवाल
यह समझना मुश्किल नहीं है कि जब राज्य में हजारों स्कूल या तो शिक्षक-विहीन हैं या वहाँ शिक्षकों की भारी कमी है, तब युक्तियुक्तकरण के नाम पर पदों की संख्या कम करना कितना सही है। यदि लक्ष्य वास्तव में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना है, तो सबसे पहले पर्याप्त संख्या में शिक्षकों की भर्ती होनी चाहिए।
यह मुद्दा सिर्फ छात्रों और शिक्षकों का नहीं है, बल्कि यह उन हजारों-लाखों युवाओं के भविष्य से भी जुड़ा है जिन्होंने शिक्षक बनने का सपना देखा है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ताकि योग्य युवाओं को रोजगार के अवसर मिलें और हमारे बच्चों को भी बेहतर शिक्षा मिल सके।
आपको क्या लगता हैं यह फैसला कितना सही या गलत? अपनी राय कमेंट्स में जरूर बताएं! और इस पोस्ट को अपने मित्रगण से साझा करे ताकि उनको भी युक्तियुक्तकरण का पूरा मसला समझ में आ जाये।
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